1. ठंडी विधि (Cold Process Method)
यह पारंपरिक तरीका है जो घरेलू और कुटीर उद्योगों में अधिक प्रचलित है।
सामग्री:
- तेल या वसा (जैसे नारियल तेल, सरसों का तेल, जैतून का तेल आदि)
- सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) – जिसे लाइ (Lye) कहते हैं
- पानी
- आवश्यकतानुसार खुशबू, रंग या जड़ी-बूटियाँ
प्रक्रिया:
- पहले तेल को माप कर गर्म किया जाता है (लगभग 40-50°C तक)।
- लाइ (NaOH) को सावधानी से पानी में मिलाया जाता है। ध्यान रहे, इसे उल्टा नहीं करना चाहिए (यानी पानी को लाइ में नहीं डालना चाहिए)।
- दोनों (तेल और लाइ सोल्यूशन) का तापमान लगभग बराबर होने पर इन्हें मिलाया जाता है।
- इस मिश्रण को तब तक चलाया जाता है जब तक यह ट्रेसिंग अवस्था में न आ जाए (जहाँ मिश्रण गाढ़ा हो जाता है)।
- इसमें अब खुशबू या अन्य सामग्री मिलाकर साँचे में डाला जाता है।
- साँचे को 24-48 घंटे के लिए ढककर रखा जाता है।
- साबुन जमने के बाद उसे काटा जाता है और 3-4 हफ्तों तक सुखाया जाता है ताकि लाइ पूरी तरह निष्क्रिय हो जाए।
2. गरम विधि (Hot Process Method)
इसमें मिश्रण को पकाया जाता है, जिससे साबुन तेजी से बनता है और उसे लंबे समय तक सुखाने की आवश्यकता नहीं होती।
प्रक्रिया:
- ठंडी विधि जैसे ही प्रारंभिक चरण होते हैं – तेल और लाइ सोल्यूशन मिलाना।
- इसके बाद इस मिश्रण को धीमी आँच पर पकाया जाता है (आमतौर पर डबल बॉयलर में)।
- मिश्रण गाढ़ा होकर जैली जैसा हो जाता है और इसमें से अतिरिक्त पानी उड़ जाता है।
- फिर इसमें खुशबू आदि मिलाकर साँचे में डाला जाता है।
- 24 घंटे में साबुन तैयार हो जाता है, हालांकि 1-2 दिन सुखाना बेहतर होता है।
अन्य प्रकार:
- Melt and Pour Method – रेडीमेड साबुन बेस को पिघलाकर उसमें खुशबू, रंग आदि मिलाकर साँचे में जमाया जाता है। यह आसान तरीका है, खासकर बच्चों या शौकिया निर्माताओं के लिए।
- Commercial Process (Continuous Process) – बड़ी फैक्ट्रियों में साबुन बनाने की एक सतत (continuous) प्रक्रिया होती है जिसमें फैट और अल्कली का रिएक्शन रिएक्टर में लगातार होता रहता है। इसमें गिल्सन प्रॉसेस जैसे तकनीकें शामिल होती हैं।